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About Me
My Biography
भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति बचपन से ही मेरा सहज आकर्षण रहा । उनके चित्रों को निहारना, श्रीमद् भागवत पुराण पढ़ना, गीताप्रेस गोरखपुर की किताबें पढ़ना मुझे बहुत पसंद था ।भक्तराज प्रह्लाद, ध्रुव, मीरा का बचपन मुझे आकर्षित करता था।कब ये संस्कार कहीं गहरे पैठते गये।मैं जान भी नहीं पायी ।हमारी बालमंडली ने भी प्रत्येक रविवार संकीर्तन करना शुरू किया ।हमने बचपन में रासलीला व रामलीला बहुत देखी ।बाद में हम उनका मंचन भी किया करते ।मीराश्याम,हरिदर्शनमालिक,आदि फिल्मों का भी मंचन किया ।भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति यह अनुराग दिन पर दिन बढ़ता ही गया और भावगीत प्रस्फुटित होने लगे ।एक दिन मेरे गुरुदेव ने मुझे लिखा- योगसाधना किंवा ज्ञानसाधना में श्रीकृष्ण प्रेम का रस न समोया हुआ हो ,और उस प्रेम में तड़पन की मिठास न हो, और फिर उस मिठास में भी अतृप्ति न हो, और फिर वह अतृप्ति भी किस काम की,यदि उसमें प्रसाद की सुगंध न हो,और विचार कर अनुभव करो कि वह प्रसाद भी कैसा? जो भावगीत का रूप धारण करके अन्तर्तम से न फूट पड़े ।